बुधवार, 4 सितंबर 2019

SEBI full form in Hindi

SEBI - The Securities & Exchange Board of India
 SEBI का हिन्दी में पूरा नाम है - भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड.



SEBI के गठन का मुख्य उद्धेश्य :-

SEBI के गठन का मकसद क्रेडिट रेटिंग एजेंसयों जैसे क्रिसिल,इक्रा के लिए डिस्क्लोजर नियम तय करना, स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों के लिए नियम निर्धारित करना व इन कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का ध्यान रखना है।भारतीय बाजार में निवेश करने हेतु एफआईआई( फॉरेन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर्स ) या जिन्हें हिंदी में विदेशी संस्थागत निवेशक कहते हैं,को भी आरबीआई के पास रजिस्ट्रेशन करवाने के साथ-साथ सेबी में भी रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है।

 सेबी संस्था का निर्माण वैसे तो 1988 में ही हो गया था लेकिन इसे वैधानिक मान्यता 12 अप्रैल 1992 को दी गयी थी।
 वर्त्तमान में दिनांक 01 मार्च 2017 से इसके चेयरमेन श्री अजय त्यागी हैं।

 सेबी का मुख्य कार्यालय मुम्बई में है।इसके अलावा सेबी के चार क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं:-
 1.उत्तरी क्षेत्रीय कार्यालय - नई दिल्ली.
2.पूर्वी क्षेत्रीय कार्यालय - कोलकाता.
3.दक्षिणी क्षेत्रीय कार्यालय - चेन्नई.
4.पश्चिम क्षेत्रीय कार्यालय - अहमदाबाद

 सेबी संस्था 9 सदस्यों द्वारा संचालित होती है। जिसमें एक चेयरमेन जो भारत सरकार द्वारा नामित किया जाता है और दो सदस्य भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधिकारी,एक सदस्य रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया से एवं 5 अन्य सदस्य जिनमें 2 अल्पकालिक और तीन पूर्णकालिक (whole time member) सदस्य भारत सरकार द्वारा नामित किये जाते हैं।

भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कोई भी कंपनी के विरुद्ध यदि आप कोई शिकायत करना चाहते हैं तो आप सेबी के टोल फ्री नं 1800 66 7575 या 1800 22 7575 पर सुुुबह 9 बजे से शाम 6 बजे अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा सेबी की https:// www.sebi.gov.in या https://investor.sebi.gov.in
या https://scores.gov.in पर भी शिकायत कर सकते हैं। SEBI सात दिन के अंदर आपकी शिकायतें संबंधित कंपनी को पहुंचा देती हैं।

Postal address of SEBI --

SEBI के मुख्यालय मुम्बई कार्यालय का पता है ~
सेबी भवन, प्लॉट संख्या C-7, "जी" ब्लॉक, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व ), मुम्बई 400051

सोमवार, 2 सितंबर 2019

Full Form of MNF in Hindi

MNF यानि MIZO National Front मिजोरम में एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी है।वर्तमान में इसके अध्यक्ष जोरमथंगा हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं। 

वर्ष 2018 से पहले MNF राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हुई थी लेकिन 2018 में यह उससे अलग हो गई। MNF के संस्थापक पी लालडेंगा थे।
                               पी लालडेंगा
MNF पार्टी का उद्भव किस प्रकार हुआ इसकी कहानी बांस की एक स्थानीय प्रजाति से जुड़ी है। इस प्रजाति के बांस में 50 सालों में एक बार फूल आते हैं।
मिजोरम की आबादी 2011 की जनगण35ना के अनुसार 10.9 लाख है। यह देश में दूसरा सबसे कम आबादी वाला राज्य है।राज्य में 91% वनक्षेत्र है। राज्य में बड़े क्षेत्र में बांस उगाया जाता है।यहां बांस की एक प्रजाति मेलोकन्ना बैक्सीफोरा पायी जाती है।बांस की इस प्रजाति में हर 50 साल में एक बार फूल आते हैं। माना जाता है कि बड़ी संख्या में चूहे इन फूलों के बीज खाने के लिए आते हैं। कुछ ही समय में इनकी तादाद कई गुना हो जाती है। जब बीज खत्म हो जाते हैं तो चूहे अनाज के खेतों व गोदामों में घुस जाते हैं।राज्य में 1959 में इसी कारण अकाल पड़ गया। केंद्र सरकार ने भरपूर सहायता की लेकिन राज्य में केंद्र के प्रति असंतोष फैल गया। वर्ष 1959 में मिजोरम असम राज्य का हिस्सा था।असम सरकार के एक पूर्व कर्मचारी ने लोगों की मदद शुरू की। उसने मिजो फेमिन फ्रंट बना कर सरकार से राहत सामग्री आने पर राज्य में चावल और अन्य जिंसों के वितरण में अथक मेहनत की।इसका असर यह हुआ कि फ्रंट की लोकप्रियता बढ़ गई।वर्ष1961 में इसे मिजो नेशनल फ्रंट MNF के रूप में बदल दिया गया। फिर फ्रंट व केंद्र सरकार में टकराव बढ़ गया। फ्रंट ने केंद्र के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया।आंदोलन ने विद्रोह का स्वरूप ले लिया। मजबूरन सरकार को वहां सेना भेजना पड़ी। आंदोलन करीब दो दशक चला। खून-खराबे में हजारों मारे गए। आंदोलन चरम पर पहुंच गया।इसने अब अलगाववादी रूप ले लिया। फ्रंट के लोगों ने मिजोरम के प्रमुख शहर लुंगलेह पर अधिकार कर लिया और भारत से अलग होने की घोषणा कर डाली। तब भारत सरकार ने राज्य में वायुसेना की मदद ली। विद्रोहियों को जंगल मे भागना पड़ा। सन् 1986 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे,फ्रंट ने केंद्र के साथ शांति समझौता किया जिसमें जी पार्थसारथी ने अहम भूमिका निभाई। मिजोरम को राज्य घोषित किया गया।वहां चुनाव हुए विद्रोही नेता  पी लालडेंगा राज्य का मुख्यमंत्री बन गया।
यह सरकार लंबे समय तक नहीं चल पाई। लालडेंगा की मृत्यु के बाद जोरमथंगा  MNF पार्टी के अध्यक्ष बने।सन् 1998 में इनके नेतृत्व में पार्टी फिर सत्ता में आई और 10 साल तक सत्ता संभाली।
                                 जोरमथंगा
 MNF 2008 में चुनाव हार गई। तब कांग्रेस ने 40 में से 32 सीटें जीती।MNF केवल 3 सीट जीत पाई।सन् 2013 में राज्य में फिर से 34 सीटें जीत कर कांग्रेस ने सरकार बनाई।MNF सिर्फ 5 सीट हासिल कर पाई।
दिसंबर 2018 में फिर से बहुमत के साथ MNF ने  मुख्यमंत्री जोरमथंगा की अगुवाई में राज्य की कमान संभाली है।

संदर्भ : विकिपीडिया
          : आलेख - श्री टी ई नरसिम्हन (बिजनेस स्टैंडर्ड  13 दिसंबर 2018 )

रविवार, 1 सितंबर 2019

Full form of NRC in Hindi

NRC का फुल फॉर्म है - " National Register of Citizens ".भारतीय नागरिक सूची


असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स की सूची 31 अगस्त 2019 को जारी कर दी गई है जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। NRC में शामिल होने के लिए कुल 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन दिया था जिसमें से 3,11,21,004 लोगों को अंतिम सूची में शामिल करने योग्य माना गया। जिन लोगों के नाम सूची में नहीं है,उनमें काफी रोष है। जो लोग इस सूची से संतुष्ट नहीं है उनको असम राज्य के कोऑर्डिनेटर प्रतीक हेजल ने कहा है कि जिनके नाम इस सूची में नहीं है वे विदेशी ट्रिब्यूनल को अपील दायर कर सकते हैं। अपील दायर करने की समय सीमा 60 से 120 दिन तक बढ़ा दी गई है।इसके उपरांत भी यदि वे ट्रिब्यूनल के फैसले से संतुष्ट नहीं होते हैं तो आगे उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं।

हम आपको बता दें कि असम देश का एकमात्र राज्य है जहां नागरिक सूची लागू है।राज्य में पहली बार एनआरसी वर्ष 1951 में बनाया गया था।उस समय बने इस रजिस्टर में तब की जनगणना में शामिल सभी व्यक्तियों को राज्य का नागरिक माना गया था। इसके कुछ सालों बाद राज्य में इस सूची को अपडेट करने की मांग होती जा रही है।
तब से राज्य में सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न्स की लिस्ट जारी करने का अभियान चलाया है।इसीलिए आजकल समाचारों में NRC शब्द  बहुत ज्यादा पढ़ने- सुनने को मिल रहा है। इस NRC लिस्ट में उन सभी भारतीय नागरिकों के नाम,पते और फोटो हैं जो 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं।असम राज्य की पहली NRC सूची के अनुसार 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया था। राज्य की दूसरी लिस्ट के अनुसार असम राज्य में रहने वाले 2.89 करोड़ लोग वैध नागरिक थे। NRC का मुद्दा क्यों इतना महत्वपूर्ण बनता जा रहा है यह समझने के लिए हमें NRC संबंधी कुछ तथ्य  जानना होंगे :-

1. असम राज्य में बड़ी तादाद में बाहर से आकर लोग यहां बस गए हैं। राज्य में रह रहे इन अवैध लोगों की पहचान करने हेतु सरकार ने NRC अभियान शुरू किया है।

2. यह अभियान detect, delete और deport पर आधारित है। सबसे पहले अवैध नागरिकों की पहचान की जाए फिर उन्हें उनके देश वापस भेजा जाए।

3. असम में करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी अवैध तरीके से रह रहे हैं। जिसके कारण वहां आर्थिक- सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है। असम में घुसपैठियों को निकालने हेतु निरन्तर 40 वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं। सन् 1971 में पाकिस्तान में हुए बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के समय उधर से काफी संख्या में पलायन करके लोग भारत आ गए। तब से ये लोग वापस अपने देश न लौट कर यहीं बस गए। इसी वजह से स्थानीय नागरिकों में रोष पनपता गया। असम में आये दिन मूल नागरिकों और घुसपैठियों के बीच हिंसक घटनाऐं  होना आम बात हो गयी है।
4. घुसपैठियों को निकालने के लिए सन् 1979 में आल असम स्टूडेंट यूनियन(AASU आसू) और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया।आंदोलन लगभग 6 साल चला।इसमें हज़ारों लोग हिंसा का शिकार हुए।

5. समस्या सुलझाने के लिए 1985 में केन्द्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत हुई।तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं ने मीटिंग की।फैसला किया गया कि 1951- 1971 के बीच आए लोगों को भारत का नागरिक माना जाएगा और 1971 के बाद आये लोगों को अपने देश लौटना होगा। लेकिन सरकार और आंदोलनकारियों में हुआ समझौता कामयाब नहीं हो पाया।

6. असम में सामाजिक- राजनीतिक तनाव लम्बे समय तक चलता रहा। 2005 में राज्य और केंद्र ने NRC लिस्ट अपडेट करने का निर्णय लिया। लेकिन इस पर अमल नहीं होने से मामला सुप्रीम कोर्ट के पास चला गया।

7. 2014 में बीजेपी ने समस्या को चुनावी मुद्दा बनाया और घुसपैठियों को निकाल बाहर करने का आश्वासन दिया।सन् 2016 में असम में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी और बांग्लादेशियों को हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई।

8. 2015 से 2018 तक पिछले तीन वर्षों में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज पेश किये। इसमें लोगों से 14 प्रकार के प्रमाणपत्र सबूत के रूप में मांगे गए थे कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है।

9. हज़ारों कर्मचारियों ने घर- घर जाकर जाँच-
पड़ताल की। सन् 2017 में राज्य सरकार ने NRC की पहली सूची जारी की। सूची जारी होते ही लोगों में हड़कंप मच गया।

10. बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह मसला पुरे देश में विवाद- विवाद का कारण बनता जा रहा है।बीजेपी के लिए यह काफी मायने रखता है। एक तरफ कांग्रेस इस मामले पर नरम दृष्टिकोण रखती है वहीं बीजेपी सख्त।