रविवार, 1 सितंबर 2019

Full form of NRC in Hindi

NRC का फुल फॉर्म है - " National Register of Citizens ".भारतीय नागरिक सूची


असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स की सूची 31 अगस्त 2019 को जारी कर दी गई है जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। NRC में शामिल होने के लिए कुल 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन दिया था जिसमें से 3,11,21,004 लोगों को अंतिम सूची में शामिल करने योग्य माना गया। जिन लोगों के नाम सूची में नहीं है,उनमें काफी रोष है। जो लोग इस सूची से संतुष्ट नहीं है उनको असम राज्य के कोऑर्डिनेटर प्रतीक हेजल ने कहा है कि जिनके नाम इस सूची में नहीं है वे विदेशी ट्रिब्यूनल को अपील दायर कर सकते हैं। अपील दायर करने की समय सीमा 60 से 120 दिन तक बढ़ा दी गई है।इसके उपरांत भी यदि वे ट्रिब्यूनल के फैसले से संतुष्ट नहीं होते हैं तो आगे उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं।

हम आपको बता दें कि असम देश का एकमात्र राज्य है जहां नागरिक सूची लागू है।राज्य में पहली बार एनआरसी वर्ष 1951 में बनाया गया था।उस समय बने इस रजिस्टर में तब की जनगणना में शामिल सभी व्यक्तियों को राज्य का नागरिक माना गया था। इसके कुछ सालों बाद राज्य में इस सूची को अपडेट करने की मांग होती जा रही है।
तब से राज्य में सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न्स की लिस्ट जारी करने का अभियान चलाया है।इसीलिए आजकल समाचारों में NRC शब्द  बहुत ज्यादा पढ़ने- सुनने को मिल रहा है। इस NRC लिस्ट में उन सभी भारतीय नागरिकों के नाम,पते और फोटो हैं जो 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं।असम राज्य की पहली NRC सूची के अनुसार 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया था। राज्य की दूसरी लिस्ट के अनुसार असम राज्य में रहने वाले 2.89 करोड़ लोग वैध नागरिक थे। NRC का मुद्दा क्यों इतना महत्वपूर्ण बनता जा रहा है यह समझने के लिए हमें NRC संबंधी कुछ तथ्य  जानना होंगे :-

1. असम राज्य में बड़ी तादाद में बाहर से आकर लोग यहां बस गए हैं। राज्य में रह रहे इन अवैध लोगों की पहचान करने हेतु सरकार ने NRC अभियान शुरू किया है।

2. यह अभियान detect, delete और deport पर आधारित है। सबसे पहले अवैध नागरिकों की पहचान की जाए फिर उन्हें उनके देश वापस भेजा जाए।

3. असम में करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी अवैध तरीके से रह रहे हैं। जिसके कारण वहां आर्थिक- सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है। असम में घुसपैठियों को निकालने हेतु निरन्तर 40 वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं। सन् 1971 में पाकिस्तान में हुए बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के समय उधर से काफी संख्या में पलायन करके लोग भारत आ गए। तब से ये लोग वापस अपने देश न लौट कर यहीं बस गए। इसी वजह से स्थानीय नागरिकों में रोष पनपता गया। असम में आये दिन मूल नागरिकों और घुसपैठियों के बीच हिंसक घटनाऐं  होना आम बात हो गयी है।
4. घुसपैठियों को निकालने के लिए सन् 1979 में आल असम स्टूडेंट यूनियन(AASU आसू) और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया।आंदोलन लगभग 6 साल चला।इसमें हज़ारों लोग हिंसा का शिकार हुए।

5. समस्या सुलझाने के लिए 1985 में केन्द्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत हुई।तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं ने मीटिंग की।फैसला किया गया कि 1951- 1971 के बीच आए लोगों को भारत का नागरिक माना जाएगा और 1971 के बाद आये लोगों को अपने देश लौटना होगा। लेकिन सरकार और आंदोलनकारियों में हुआ समझौता कामयाब नहीं हो पाया।

6. असम में सामाजिक- राजनीतिक तनाव लम्बे समय तक चलता रहा। 2005 में राज्य और केंद्र ने NRC लिस्ट अपडेट करने का निर्णय लिया। लेकिन इस पर अमल नहीं होने से मामला सुप्रीम कोर्ट के पास चला गया।

7. 2014 में बीजेपी ने समस्या को चुनावी मुद्दा बनाया और घुसपैठियों को निकाल बाहर करने का आश्वासन दिया।सन् 2016 में असम में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी और बांग्लादेशियों को हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई।

8. 2015 से 2018 तक पिछले तीन वर्षों में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज पेश किये। इसमें लोगों से 14 प्रकार के प्रमाणपत्र सबूत के रूप में मांगे गए थे कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है।

9. हज़ारों कर्मचारियों ने घर- घर जाकर जाँच-
पड़ताल की। सन् 2017 में राज्य सरकार ने NRC की पहली सूची जारी की। सूची जारी होते ही लोगों में हड़कंप मच गया।

10. बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह मसला पुरे देश में विवाद- विवाद का कारण बनता जा रहा है।बीजेपी के लिए यह काफी मायने रखता है। एक तरफ कांग्रेस इस मामले पर नरम दृष्टिकोण रखती है वहीं बीजेपी सख्त।

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