सोमवार, 26 सितंबर 2016

फेरा और फेमा कानून FERA & FEMA

FERA - Foreign Exchange Regulation Act
FEMA -Foreign Exchange Management Act




 

- फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट -


FERA कानून को 1973 में संसद की मंजूरी मिली थी। और 1 जनवरी 1974 को यह अस्तित्व में आया। फेरा कानून भारत में पंजीकृत देशी और विदेशी दोनों संस्थाओं व कंपनियों पर लागू होता था। फेरा आपराधिक श्रेणी का कानून था। इसके नियम इतने सख्त थे कि भारत में इसका उल्लंघन करता कोई पकड़ा गया तो उसे जेल भी जाना पड़ सकता था। इसलिए बड़े उद्योगपतियों व विदेशी व्यापारियों के बीच इस कानून का भय छा गया जिसका प्रभाव विदेशी मुद्रा भंडार व आयत-निर्यात पर पड़ने लगा। नतीजतन 1999 के शीतकालीन सत्र में फेरा की जगह फेमा लाने पर सहमति बनी और एक जून, 2000 को फेरा के निरस्त होते ही फेमा अस्तित्व में आ गया। फेरा में जहां कोई मामला आपराधिक श्रेणी में आता था और सजा का प्रावधान था, वहीं फेमा एक दीवानी या सिविल कानून है जिसमें नागरिक अपराध के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसलिए इसमें सजा नहीं, सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है। फेरा इसलिए भी विवादित माना गया, क्योंकि इसके तहत मुकदमा दर्ज होते ही आरोपी दोषी माना जाता था और उसे ही यह साबित करना होता था कि वह कुसूरवार नहीं है, जबकि अन्य मामलों में दोष साबित न होने तक आरोपी निर्दोष माना जाता है। फेरा के स्थान पर फेमा कानून लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि देश के विदेशी विनिमय बाजार और व्यापार को अधिक से अधिक सरल बनाया जाए। ऐसा हुआ भी, और इससे देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को खूब बढ़ावा मिला। इसके माध्यम से फॉरेन एक्सचेंज (विदेशी विनिमय) से संबंधित सभी कानून को एक करने और उन्हें संशोधित करने में भी सरकार को सफलता मिली।
चूंकि फॉरेन एक्सचेंज बढ़ाना था, लिहाजा इसके कई प्रावधान विदेशी व्यापार को बढ़ावा देते हैं। इसके सेक्शन 2 के अनुसार, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, चीन और ईरान के निवासी भारत के किसी भी हिस्से में कोई स्थायी संपत्ति या अचल संपत्ति तो नहीं खरीद सकते, पर खेती के लिए या बगीचे के लिए उसका स्थानांतरण जरूर कर सकते हैं। वह किसी भी संपत्ति को महज पांच वर्ष के लिए लीज पर ले सकते हैं, वह भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की अनुमति मिलने के बाद। कानून यह भी कहता है कि कोई व्यक्ति अपने साथ अधिकतम 5,000 अमेरिकी डॉलर और इतने के ही साज-सामान ले जा सकता है। यदि इससे अधिक विदेशी मुद्रा या सामान ले जाना होता है, तो उस यात्री को इस बारे में पहले कस्टम अधिकारियों को सूचना देनी होती है। फेमा भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिक पर लागू नहीं होता।
  • फेमा में केवल अधिकृत व्‍यक्तियों या एजेंसी को ही विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति में लेनदेन करने की अनुमति दी गई है। अधिनियम के अंतर्गत, ऐसे अधिकृत व्‍यक्ति या एजेंसी का अर्थ अधिकृत डीलर, मनी चेंजर, विदेशी बैंकिंग यूनिट या कोई अन्‍य व्‍यक्ति जिसे उसी समय रिजर्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किया गया हो, से है।

फेमा का मुख्यालय -

 फेमा का मुख्यालय प्रवर्तन निदेशालय अर्थात Directorate of Enforcement डायरेक्टरेट ऑफ़ एनफोर्समेंट कहलाता है, जो नई दिल्ली में है। इसके अलावा इसे पांच जोनल ऑफिस में भी बांटा गया है, जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और जालंधर में है। जोन को भी सात सब जोन में बांटा गया है। सब जोन की जिम्मेदारी जहां सहायक निदेशक संभालता है, वहीं प्रवर्तन निदेशालय का मुखिया निदेशक कहलाता है।   

शनिवार, 10 सितंबर 2016

Full Form of CBS - Core Banking Solutions

 CBS- Core Banking Solutions

CBS का अर्थ है- कोर बैंकिंग सॉल्यूशन्स

CBS में "C" का मतलब है, CORE
CORE शब्द का फुल फॉर्म है :-
Centralized Online Real Time Environment
CORE शब्द का  तात्पर्य है - किसी बैंक की एक शाखा द्वारा  जो सेवाएं किसी ग्राहक को प्रदान की जाती हैं वो सभी सेवाएं उस ग्राहक को बैंक की अन्य स्थानों पर स्थित शाखाओं में भी उपलब्ध होंगी। CBS की सुविधा बैंकों में कम्प्यूटर्स का उपयोग प्रारंभ होने पर शुरू हुई। CBS सिस्टम में एक बैंक की समस्त शाखाएं केंद्रीकृत इंटरनेट centralised internet द्वारा एक दूसरे से सम्बद्ध हो जाती हैं। जिसकी वजह से बैंक का कोई ग्राहक अपनी गृह शाखा यानि जहां उसका खाता है,में जाये बिना दुनिया में कहीं भी स्थित उसी बैंक की अन्य  शाखा से लेन-देन कर सकता है।
कोर बैंकिंग का कॉन्सेप्ट इस महत्वपूर्ण तर्क से उभरा है कि बैंकों की शाखाएं कंप्यूटरीकृत होने व आपस में एक-दूसरे से सम्बद्ध होने से अब बैंक का कोई ग्राहक किसी विशेष शाखा का ग्राहक नहीं बल्कि उस पूरी बैंक का ग्राहक बन गया है।
जैसा कि कोर बैंकिंग सॉल्यूशन्स के फुल फॉर्म में वर्णित है- Centralized Online Real Time Environment.अर्थात  कोर बैंकिंग के तहत जो भी व्यवहार किये जाते हैं वे सब रियल टाइम होते हैं व उसी समय इंट्रानेट के जरिये जुड़ी बैंक की समस्त शाखाओं में भी दिखाई देते हैं।
बैंकों में CBS सिस्टम लागू होने से ग्राहक व बैंक दोनों को ही कई लाभ हुए हैं। ग्राहक अपना खाता बैंक की अन्य शाखा से भी संचालित कर सकता है। एक बार ग्राहक संबंधी पूरी जानकारी सिस्टम में भरने के बाद खाते को मेंटेन करने में आसानी हो जाती है। ब्याज, पेनल्टी व अन्य चार्जेस की गणना कंप्यूटर अपने आप करके खाते में डेबिट-क्रेडिट कर देता है।





रविवार, 4 सितंबर 2016

UCIC का हिन्दी में अर्थ

UCIC - बैंकिंग एवं फाइनेंस क्षेत्र में इसका मतलब है: Unique Customer Identification Code
RBI की गाइडलाइन्स के अनुसार बैंकों एवं गैर बैंकिंग संस्थाओं को यह निर्देश दिए गए हैं कि प्रत्येक ग्राहक को एक से ज्यादा खाते खोलने पर एक अतिरिक्त नं  UCIC दिया जाए।
UCIC कोड पैन कार्ड व पते के प्रमाण-पत्र और आधार कार्ड की संख्या के द्वारा बनाया जाता है। RBI के इस निर्देश के कारण बैंक काफी परेशानी में आ गए हैं।  एक ग्राहक के कई खाते बैंक की एक ही शाखा में खुले  हुए हैं। इन सब को सम्मिलित करके UCIC बनाना कठिन है। इसी वजह से RBI इसे  अभी तक बैंकों के लिए अनिवार्य रूप से लागू नहीं कर पायी है। लेकिन  UCIC कोड से देश के हर नागरिक के वित्तीय लेन-देन की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है, इसलिए RBI और भारत सरकार इसे जल्द से जल्द लागू करना चाहती है।
UCIC के द्वारा बैंकों को अपने ग्राहकों द्वारा किये जाने वाले ट्रांसेक्शन्स के सम्बन्ध में जानकारी तुरन्त हासिल हो सकती है। UCIC कोड प्रणाली लागू होने पर ग्राहक अपना खाता फौरन किसी दूसरी बैंक में ट्रान्सफर करा सकेगा